मोतियाबिंद के लक्षण

 मोतियाबिंद के लक्षणमोतियाबिंद एक आँखों की बीमारी है जिसे सफ़ेद मोतिया और (Cataract) भी कहा जाता है इसमें आँखों के उपर सफ़ेद परद जमा होती है और नजर धुंधली होने के कारण मोतियाबिंद से पीड़ित व्यक्ति को पड़ने , नजर का कम करने , कर चलाने में और विशेषकर रात के समय में समस्या का सामना करना पड़ता है आइए जानते मोतियाबिंद के लक्षण

मोतियाबिंद के लक्षण

इस टॉपिक हम जानेगे मोतियाबिंद के लक्षण –

वैसे तो मोतियाबिंद धीरे – धीरे विकसित होता है और सुखाती दिनों में नजर पर कोई असर नहीं पड़ता पर समय के साथ आपकी नजर पर प्रभाव डालता है धीरे – धीरे समय के साथ आपको धुंधला दिखाई देने लगेगा इसके कारण व्यक्ति को अपनी प्रतिदिन की सामान्य गतिविधियों को करना भी मुश्किल हो जाता है | मोतियाबिंद के सामान्य लक्षण – 

  1. मरीज को देखने में धुंधलापन होता है और यह मोतिया बढ़ने के साथ बढ़ता जाता है |
  2. कुछ लोगो को रौशनी के चारो तरफ रंगीन घेरहा भी दिखाई देता है हालाकि यह घेहरा कालामोतिया वाले मरीजों को ज्यादा दिखाई देता है 
  3. एक खास तरह का सफ़ेद मोतिया होता है जिसमे दिन के समय मरीज को ज्यादा धुंधला दिखाई देता है |
  4. कभी – कभी कुछ लोगो को एक ही  आकृति एक से अधिक दिखाई देती है यानि कोई एक वस्तु पढ़ी हुई है तो वह मोतिया वाले मरीज को एक से ज्यादा दिखाई देती है इसे हमारी भाषा में पोलियोपिया कहा जाता है |
  5. कुछ लोगो के चश्मे के नंबर में इस दौरान ज्यादा बदलाव होता है माइनस नंबर में पहनने वाले का नंबर बढ़ता जाता है और  प्लस पहने वाले का नंबर घटता जाता है |
  6. मोतियाबिंद के लक्षण ज्यादातर बुजुर्गो में सामान्य होते है इसका एक लक्षण बुजुर्ग में  निकट द्रष्टि दोष में  निरंतर बढ़ोतरी |
  7. रात में ड्राइविंग में दिक्क्त आना जैसे की सामने से आती गाड़ी को हेडलाइटर से आँखे चौंधियाना |

दोहरी द्रष्टि ( डबल विजन )

मोतियाबिंद होने के कारण  

मोतियाबिंद होने के कारण जानकर ही उसका इलाज किया जा सकता है 

  1. सबसे पहले हम बात करेंगे वृद्धा अवस्था में होने वाले सफ़ेद मोतिया की किसी व्यक्ति को 50 साल की आयु के बाद यदि उनका लेंस धुंधला होता है तो उसे सामान्य माना जाता है यह उम्र अलग – अलग लोगो में अलग – अलग हो सकती है किसी को जल्दी तो किसी को देर से आने की सम्भावना बनी रहती है |   
  2. दूसरी तरह का मोतिया होता है जो चोट से होता है हमारी आँख में लगने वाले किसी भी चोट से हमारा लेंस डेमेज हो सकता है और आँख में मोतियाबिंद बन सकता है |
  3. तीसरी तरह का मोतिया जो और तरह की बीमारी से होता है जैसे शुगर जिनकी शुगर होती है उनकी शुगर अनकंट्रोल हो जाती है तो उनको मोतिया बनने की सम्भावना बढ़ जाती है इस प्रकार अगर शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाये या फासफोरस अधिक हो जाये तो भी मोतिया बनने की सम्भावना होती है |
  4. इसके आलावा अगर कोई महिला गर्भवती होती है और उसे किसी तरह का इन्फेक्शन हो तो फिर उसका असर उसके बच्चे पर भी आयेगा और उसमे भी मोतिया बनने की सम्भावना बनती रहती है |
  5. उसके आलावा ऐसा मोतियाबिंद जो बच्चे के पैदा होने से लेकर युवा अवस्था के बिच में होता है तो इस तरह से यह विभिन्न प्रकार के होते है |

मोतियाबिंद के लक्षण

मोतियाबिंद का उपचार 

शुरुवाती दिनों में जब रौशनी का नुकसान कम होता है तो मोतिया रोकने के लिए कुछ दवाईयां दी जाती है इन दवाइयों से मोतियाबिंद के बढ़ने की स्पीड कम हो जाती है इससे किसी व्यक्ति को कुछ महीनो व कुछ सालो के लिए मोतियाबिंद के ऑपरेशन को टाला जा सकता है |

जब किसी व्यक्ति की जितनी आवश्यकता है दिनचर्या के काम के लिए रौशनी की वो पूरी ना हो और उसे लगे की उसकी रौशनी कम है तब उन्हें ऑपरेशन का रास्ता अपना लेना चाहिए |

ऑपरेशन जो आजकल किया जाता है वो मशीन द्वारा किया जाता है यह अल्ट्रसाउंड के द्वारा चलने वाली एक मशीन है जिसमें मोतिया को छोटे – छोटे टुकड़े में तोड़ कर बहुत छोटे कट से 1 से 3 मिली मीटर के कट से मशीन की साहयता से निकाल लिया जाता है इस तरह लेंस साफ हो जाता है फिर उसकी जगह पर बनावटी लेंस आँख में डाल दिया जाता है इससे हमारी आँख बाद में देख पाती है यह लेंस मोनोफोकल लेंस भी हो सकते है और मल्टीफोकल भी |

  1. मोनोफोकल लेंस डालने के बाद मरीज को दूर या पास किसी एक के लिए चश्मे की जरूरत पड़ती है 
  2. जबकि मल्टीफोकल लेंस डालने के बाद ज्यादातर मरीजों को चश्मे की जरूरत नहीं पड़ती है कुछ – कुछ लोगों को थोड़ा बहुत नंबर लगाने की जरूरत पड़ सकती है |
मोतियाबिंद की सर्जरी का सबसे सही समय क्या है ?

मोतियाबिंद के इलाज के बारे में कुछ धारणाए है जिनके बारे में स्पष्टीकरण जरूरी है ज्यादातर मरीज यह सोचते है की उनको मोतियाबिंद बता दिया गया है तो उनको जल्दी से ऑपरेशन करा लेना चाहिए जबकि यह सच नहीं है|

शुरुवाती समय में जब चश्मे का नंबर बदलने में दवाईयाँ डालने से काम चल जाता हो तो उस समय ऑपरेशन की बिलकुल भी जरूरत नहीं होती उस स्थति में जबकि मरीज का मोतिया उस हद तक बढ़ जाये जबकि उसे अपनी रोजकी दिनचर्या के काम में मुश्किल आने लगे तो उस समय मरीज को ऑपरेशन के बारे में सोचना चाहिए मोतिया अगर हमारी आँख के अंदर रहता भी है तो उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचता तो इसलिए इसमें कोई ऐसी डरने वाली बात नहीं है |

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